Wednesday, August 18, 2010

गिले शिकवे

शायद तुझसे सच्चे प्यार का ये सिला मिला
तुझसे जब भी मिला,कोई न कोई शिकवा गिला मिला
समझ ना सका तू प्यार को मेरे,चाहे रहता था खुदा की तरह दिल में मेरे
तू तो मुझसे ऐसे मिला कि कोई अजनबी मिला
छोड के मुझे तन्हा भरी दुनिया में
हो गया एक पल में किसी गैर का
मैं भी तो कर सकता था ये
मुझे तो गैरों का पूरा काफ़िला मिला
कसूर तेरा नहीं है मगर,कोई कमी मुझमें ही रही होगी
खुद को न बना सका तेरे प्यार के काबिल
यही एक गम लिये मैं इस दुनिया से चला
दिल में थी तमन्ना कि कोई हमसे भी वफ़ा करे
मगर दुनिया में जिससे भी मिला वो बेवफ़ा मिला
डरते हैं अब तो हम नाम से भी मुहब्बत के
तेरे जाने से गमों का ऐसा जलजला मिला
शायद तुझसे सच्चे प्यार का ये सिला मिला
तुझसे जब भी मिला,कोई न कोई शिकवा गिला मिला

No comments:

Post a Comment