Wednesday, August 18, 2010

गरीबी और आम इन्सान

निकला था उस शाम घर से टहलने को
देखा एक बच्चा खेलता हुआ फुटपाथ पे
साथ में थे उसके गरीब माँ बाप और बहन
अपने कुछ टूटे फूटे बर्तन और कपडों के गट्ठर के साथ
शायद घर नहीं था उनके पास
घर तो बहुत बडी बात है शायद पहनने को पूरे कपडे भी न थे
बहुत दुखः हुआ जब देखा उस बच्चे को खेलते हुए बिना खिलौनों के
बहुत तरस आया जब देखा उसकी बहन को
जो बडी मुश्किल से छुपा रही थी चीथडों में अपने जिस्म को
पता नहीं कहाँ से दो वक्त की रोटी का बन्दोबस्त करता होगा उसका बाप
शायद गरीबी ने मुश्किल कर दिया था जीवन उस परिवार का
पहले सोचा,हे ईश्वर,क्यों ये गरीबी बनाई तूने
क्यों बनाया सन्सार मे अमीर गरीब का भेदभाव
तभी आया वो बच्चा मेरे पास और कहा,भईया
दे दो मुझे एक रुपया,आइसक्रीम खानी है
मैनें दे दिया एक रुपया उसे
उसके बाप को लगा मेरा दिल पिघल गया
मगर न समझ आया उसे,कि मैं फ़रिश्ता नहीं एक आम इन्सान था
जो औरों की ही तरह मन ही मन
उसकी गरीबी पे हँसता हुआ आगे निकल गया

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