Wednesday, August 18, 2010

मासूम मुहब्बत का बस इतना सा फ़साना है
कागज़ की कश्ती है,बारिश का जमाना है
क्या शर्त-ए-मुहब्बत है,क्या शर्त-ए-जमाना है
आवाज़ भी जख्मी है और गीत भी गाना है
कोई उम्मीद भी नहीं उस पार उतरने की
कश्ती भी पुरानी है,तूफ़ान को भी आना है
वो समझें या न समझें अन्दाज़ मुहब्बत के
उस शख्स को आँखों से एक शेर तो सुनाना है
भोली सी अदा उनकी,आज फ़िर कोई उनसे इश्क की जिद पर है
फ़िर आग का दरिया है,और डूब के जाना है

दिल के किसी दूर के कोने से

१.
दोनों हाथ फैला कर माँगा तुझे खुदा से
मगर खुदा ने शायद मेरी सुनी ही नहीं
लोगों से पूछा सबब तेरे ना मिलने का
जवाब एक ही मिला कि तू मेरे लिये बनी ही नहीं

२.
कौन चला बागों से मस्तियाँ लेकर
कली-२ रो रही है सिसकियाँ लेकर
जो हँस रहे थे मेरे डूबने पर कल
वही निकले है आज मेरी तलाश मे कश्तियाँ लेकर

३.
बेवफ़ा तेरी बेवफ़ाई का अन्जाम क्या निकला
मेरे प्यार पे ना किया ऐतबार,इस से तेरा नाम,क्या निकला
तोड के देख लिया तूने शीशा मेरे दिल का
बता तेरी सूरत के सिवा और पैगाम क्या निकला

४.
प्यार करो अब अगर किसी से तो दिल से करना
इसे बस इश्क का नाम न देना
जैसा तूने मुझे दिया जालिम वैसा किसी को इनाम न देना
जान ले लेना चाहे उसकी
पर भूलकर भी उसे बेवफ़ाई का इल्ज़ाम न देना

५.
कसूर न उनका है न मेरा
दोनों ही रिश्तों की रस्म निभाते रहे
वो हमारे लिये दोस्ती का एहसास जताते रहे
और हम उनके लिये मुहब्बत दिल में छुपाते रहे

६.
जमाने भर की नेमतों में उतना सुकून नहीं
जितना इस दिले बीमार को तेरे प्यार में है
तुझे पा लूँ तो शायद में खुश ना रह सकूं
क्योकि प्यार का असली मज़ा तो तुझे पाने के इन्तज़ार में है

७.
बारिश बरसे रिमझिम-२ तो फ़िज़ाओं में नमी महसूस होती ही है
इस हसीन मौसम में कोई कितना ही भुलाये उनको
उनकी कमी तो महसूस होती ही है

८.
फ़िर आयी एक शाम बरसात की
दिल ने की तमन्ना तुझसे मुलाकात की
ऐसे आलम में गर जो तेरा साथ हो
जरूरत न हो जमाने में किसी के साथ की

९.
कभी इसे शीशा कहते हैं लोग तो कभी पत्थर कहता है जमाना
जो चाहो कह लो इसे,पर किसी का दिल कभी न दुखाना
क्योकि शीशे में होते हैं खुदा के बनाये इन्सानी चेहरे
तो पत्थर में खुद खुदा का ठिकाना

गिले शिकवे

शायद तुझसे सच्चे प्यार का ये सिला मिला
तुझसे जब भी मिला,कोई न कोई शिकवा गिला मिला
समझ ना सका तू प्यार को मेरे,चाहे रहता था खुदा की तरह दिल में मेरे
तू तो मुझसे ऐसे मिला कि कोई अजनबी मिला
छोड के मुझे तन्हा भरी दुनिया में
हो गया एक पल में किसी गैर का
मैं भी तो कर सकता था ये
मुझे तो गैरों का पूरा काफ़िला मिला
कसूर तेरा नहीं है मगर,कोई कमी मुझमें ही रही होगी
खुद को न बना सका तेरे प्यार के काबिल
यही एक गम लिये मैं इस दुनिया से चला
दिल में थी तमन्ना कि कोई हमसे भी वफ़ा करे
मगर दुनिया में जिससे भी मिला वो बेवफ़ा मिला
डरते हैं अब तो हम नाम से भी मुहब्बत के
तेरे जाने से गमों का ऐसा जलजला मिला
शायद तुझसे सच्चे प्यार का ये सिला मिला
तुझसे जब भी मिला,कोई न कोई शिकवा गिला मिला

गरीबी और आम इन्सान

निकला था उस शाम घर से टहलने को
देखा एक बच्चा खेलता हुआ फुटपाथ पे
साथ में थे उसके गरीब माँ बाप और बहन
अपने कुछ टूटे फूटे बर्तन और कपडों के गट्ठर के साथ
शायद घर नहीं था उनके पास
घर तो बहुत बडी बात है शायद पहनने को पूरे कपडे भी न थे
बहुत दुखः हुआ जब देखा उस बच्चे को खेलते हुए बिना खिलौनों के
बहुत तरस आया जब देखा उसकी बहन को
जो बडी मुश्किल से छुपा रही थी चीथडों में अपने जिस्म को
पता नहीं कहाँ से दो वक्त की रोटी का बन्दोबस्त करता होगा उसका बाप
शायद गरीबी ने मुश्किल कर दिया था जीवन उस परिवार का
पहले सोचा,हे ईश्वर,क्यों ये गरीबी बनाई तूने
क्यों बनाया सन्सार मे अमीर गरीब का भेदभाव
तभी आया वो बच्चा मेरे पास और कहा,भईया
दे दो मुझे एक रुपया,आइसक्रीम खानी है
मैनें दे दिया एक रुपया उसे
उसके बाप को लगा मेरा दिल पिघल गया
मगर न समझ आया उसे,कि मैं फ़रिश्ता नहीं एक आम इन्सान था
जो औरों की ही तरह मन ही मन
उसकी गरीबी पे हँसता हुआ आगे निकल गया

कल रात

कल रात पुरानी यादों का,गुलशन-ए-तमाम आया
फ़िर बहुत रोया था मैं,तब जाकर आराम आया
याद है मुझे तुझसे पहली बात,पहली मुलाकात वो
वो भी एक वक्त था कि जिन्दगी में खुशियों का गुलफ़ाम आया
वो बढना सिलसिला बातों का,वो बढना सिलसिला मिलने का
सब कुछ बहा ले गया जो पल में,जाने कहाँ से वो तूफ़ान आया
वो रखना यकीन तुझ पे रब से बढकर,वो करना फ़िक्र तेरी खुद से बढकर
पर तुम ना आये फ़िर कभी यार,चाहे मिलने का मौका हर शाम आया
इक बात बता दे दोस्त मुझे,तू क्यों था तब भी बेखबर
दिल से मेरे तो हज़ारों बार,तेरे लिये मुहब्बत का पैगाम आया
क्यूँ इतनी देर से बताया उसके बारे में मुझे,थी हुकूमत जिसकी दिल पे तेरे
मैनें ली कसम उस दिन खुदा की,जो होठों पे मेरे फ़िर कभी तेरा नाम आया
मगर फ़िर से.......
कल रात पुरानी यादों का,गुलशन-ए-तमाम आया
फ़िर बहुत रोया था मैं,तब जाकर आराम आया