Sunday, March 28, 2010

कैसे


तुझसे मिलने की न आरज़ू है कोई ,न तुझे पाना मेरी मन्ज़िल
फ़िर भी तेरी यादो से भला दूर मैं जाऊँ कैसे,
प्यार एक सफ़र है,निकल आया है दिल बहुत दूर,
अब इस अन्जान शहर मे भला घर मैं बनाऊँ कैसे,
पूछ लेता हूँ हवाओ के झोकोँ से तेरा हाल,
याद नहीं तेरी गली का रस्ता,भला लौट पाऊँ कैसे,
साकी मैं वो बात नहीं,मैखानों मैँ भी नशा न हुआ,
तेरी आँखों की शराब का है नशा मुझे,भला होश मैं आऊँ कैसे,
लोग बङी आसानी से भूल जाते हैं अपनों को यहाँ,
तू अपना था यकीं तो नही,फ़िर भी भला तुझे भुलाऊँ कैसे,
जलाये हैं कई चिराग मज़ारों पे कि तेरी दुनिया आबाद रहे,
मेरी दुनिया में तो तू ही नहीं,भला इस दुनिया को जलाऊँ कैसे,
खत जला डाले तेरे,तेरी तस्वीर के साथ,
दिल से मगर तस्वीर तेरी,भला हटाऊँ कैसे,
मेरी जिन्दगी में तेरे आने से पहले,तेरे जाने के बाद का आलम,
दोनों वक्त मुश्किल गुजरे हैं,भला जिन्दगी बिताऊँ कैसे
तेरे इश्क का करिश्मा है,कि बन गया हूँ फ़कीर,
अब मेरे खुदा तू ही बता,इस से ज्यादा भला मैं तुझे चाहूँ कैसे

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